तेहरान (IQNA) सात सौ से भी ज़्यादा सालों से, खूबसूरत कश्मीर की एक ख़ास झील के हाशिए पर पड़े लोग उन समूहों द्वारा हत्याओं, गिरफ़्तारियों और हमलों का शिकार होते रहे हैं जो शियाओं द्वारा किए गए किसी भी शोक को बहुदेववाद मानते हैं। फिर भी, इस क्षेत्र में शोक समारोह अभी भी ज़ोरों पर है और इसका चरम उस दिन देखा जा सकता है जब युवा नावों पर सवार होकर शोक के एक निश्चित बिंदु तक पहुँचने तक विलाप नौहा व मातम शुरू करते हैं।
वर्षों के दबाव और निषेध के बाद यह अनुष्ठान कैसे और अधिक समृद्ध हुआ है और हाल के वर्षों में रॉयटर्स और सीएनएन की रिपोर्टों का एक निरंतर विषय बन गया है? हुदा अकादमी उन युवाओं की कहानी बयान करती है जो इमाम हुसैन (अ.स.) के युवाओं के लिए झील के पानी पर खड़े होकर रोते हैं।![]()
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